यण संधि की परिभाषा | Yan Sandhi Ke Udaharan, Yan Sandhi Ki Paribhasha

यण संधि की परिभाषा, Yan Sandhi Ke Udaharan – आज के इस ब्लॉग में हम यण संधि की परिभाषा के बारे में पढ़ेंगे इसमें संधि की परिभाषा उदाहरण व नियम के बारे में हम विस्तार से पढ़ेंगे।

यण संधि की परिभाषा, (Yan Sandhi Ke Udaharan)

यण संधि का सूत्र – इकोयणचि”

यदि प्रथम पद के अन्त में इक् प्रत्याहार (इ, उ, ऋ लृ )आये तथा द्वितीय पद के प्रारम्भ में कोई भी असमान स्वर हो तो क्रमश

यण संधि के नियम 

  • इ + अस = य्
  • उ + मान = व्
  • ऋ + स्व = र्
  • लृ + र =ल् हो जाता है 

यण संधि के उदाहरण (Yan Sandhi Ke Udaharan)

(1) संकेत सूत्र- इ/ई+असमान स्वर य्

  • नि+आय = न्याय 
  • नि+आस = न्यास 
  • नि+आसी = न्यासी 
  • निं + ऊन  = न्यून 
  • नि+अस्त = न्यस्त
  • वि+अप +ईक्षा = व्यपेक्षा 
  • वि+अग्र = व्यग्र 
  • वि + ऊह = व्यूह
  • वि+अक्त = व्यक्त 
  • वि+अक्ति = व्यक्ति 

यण संधि के 50 उदाहरण (yan sandhi ke example)

  • वि + अय = व्यय 
  • वि +अर्थ = व्यर्थ 
  • वि+अष्टि = व्यष्टि 
  • वि+असन = व्यसन 
  • वि + अभिचार = व्यभिचार
  • वि + आप्त = व्याप्त 
  • वि + आकरण = व्याकरण 
  • वि+आख्यान = व्याख्यान 
  • वि+आख्या = व्याख्या 
  • वि+ आघात = व्याघात
  • वि+आकुल = व्याकुल 
  • वि+आस = व्यास 
  • वि+आपक = व्यापक 
  • वि+आयाम = व्यायाम 
  • वि+आप्ति = व्याप्ति 
  • वि+आवर्तन = व्यावर्तन
  • वि+उत्पत्ति (उद्+पद्+ति) = व्युत्पत्ति 
  • वि+अंजन = व्यंजन
  • अति + अन्त = अत्यन्त
  • अति+अल्प = अत्यल्प 
  • अति+आचार = अत्याचार 
  • अति+अधिक = अत्यधिक
  • अति + उक्ति = अत्युक्ति 
  • अति + आवश्यक = अत्यावश्यक 
  • अति+उद् +तम = अत्युत्तम 
  • अति + उष्ण = अत्युष्ण
  • अति + एकता = अत्येकता 
  • अधि + अक्षि = अध्यक्ष
  • अधि + अक्षर = अध्यक्षर 
  • अधि + आपक = अध्यापक 
  • अधि + अयन = अध्ययन 
  • अधि + आपन = अध्यापन 
  • अधि + आय = अध्याय
  • अधि+आदेश = अध्यादेश 
  • अधि +आत्म = अध्यात्म 
  • अधि + ऊढा = अध्यूहा 
  • प्रति+अक्षि = प्रत्यक्ष 
  • प्रति+अंग = प्रत्यंग 
  • प्रति+ ऊह = प्रत्यूह 
  • प्रति + उष = प्रत्युष 

यण संधि के 20 उदाहरण (yan sandhi examples in hindi)

  • प्रति + उषा = प्रत्युषा 
  • प्रति + एक = प्रत्येक 
  • प्रति + उत्पन्न = प्रत्युत्पन्न
  • प्रति+एकता = प्रत्येकता
  • प्रति + उपलब्ध = प्रत्युपलब्ध 
  • प्रति + अक्षर = प्रत्यक्षर
  • प्रति+अंचा = प्रत्यंचा 
  • प्रति+अर्पण = प्रत्यर्पण
  • प्रति+उत्तर (उद्+तर) = प्रत्युत्तर 
  • प्रति + उपकार = प्रत्युपकार 
  • प्रति + आशा = प्रत्याशा 

यण संधि के 100 उदाहरण (Yan Sandhi Ke 100 Udaharan)

  • प्रति+आशी = प्रत्याशी 
  • प्रति + आशित = प्रत्याशित 
  • प्रति+आख्यान = प्रत्याख्यान 
  • प्रति+आवर्तन = प्रत्यावर्तन 
  • प्रति+आ+भूति = प्रत्याभूति 
  • प्रति + आरोपण = प्रत्यारोपण 
  • प्रति+अय = प्रत्यय 
  • प्रति+अपकार = प्रत्यपकार 
  • प्रति + अभिज्ञ = प्रत्यभिज्ञ 
  • प्रति + अंतर = प्रत्यंतर
  • प्रति+आ+रोप = प्रत्यारोप 
  • अभि+आस = अभ्यास 
  • अभि + आगत = अभ्यागत 
  • अभि + उदय = अभ्युदय 
  • अभि+उत्थान = अभ्युत्थान 
  • अभि+ अर्थी = अभ्यर्थी 
  • अभि + अंतर = अभ्यंतर 
  • अभि + अर्थना = अभ्यर्थना 
  • परि+आय = पर्याय
  • परि+आ+ वरण = पर्यावरण
  • परि +अव + ईक्ष + अक = पर्यवेक्षक 
  • परि+अंत = पर्यंत 
  • परि+आकुल = पर्याकुल 
  • परि + उषण = पर्युषण
  • परि+अवसान = पर्यवसान 
  • परि+अटन = पर्यटन 
  • परि+अटक = पर्यटक 
  • परि+अव + ईक्षण = पर्यवेक्षण 
  • परि+आप्त = पर्याप्त

विशेष –

उपरि + उक्त = उपर्युक्त (‘उपरोक्त’ शब्द व्याकरणात्मक रूप से अशुद्ध है; क्योंकि ऊपर (तद्भव) है; जबकि ‘उक्त’ तत्सम शब्द है। संधि में तत्सम शब्द के साथ तत्सम शब्द का ही योग हो सकता है)।

  • मति + अनुसार = मत्यनुसार 
  • मति + उदय = मत्युदय
  • मति + उन्नति =  मत्युन्नति
  • राशि + अंतरण =  राश्यंतरण 
  • त्रि+अम्बक (आँख) = त्र्यम्बक 
  • त्रि + अक्षर  = त्र्यक्षर  यदि + अपि = यद्यपि
  • स्वस्ति + अयन = स्वस्त्ययन
  • गति + अर्थक = गत्यर्थक 
  • गति + अवरोध = गत्यवरोध 
  • गति + अनुसार = गत्यनुसार
  • रीति + अनुसार = रीत्यनुसार
  • अग्नि + आशय = अग्न्याशय 
  • इति+अलम् = इत्यलम्
  • इति+आदि = इत्यादि
  • ध्वनि + आत्मक = ध्वन्यात्मक 
  • प्राप्ति + आशा = प्राप्त्याशा
  • नदी + अर्पण = नद्यर्पण 
  • नदी+आवेग = नद्यावेग 
  • नदी + ऊर्मि = नधूर्मि
  • नदी + अम्बु = नद्यम्बु
  • नदी + अंश = नधंश
  • नदी+आमुख = नद्यामुख 
  • देवी + अंग = देव्यंग 
  • देवी + अर्पण = देव्यर्पण
  • देवी + एकता = देव्येकता
  • देवी + आशा = देव्याशा 
  • सखी + आदेश =  सख्यादेश
  • सखी + आगमन = सख्यागमन
  • वाणी + औचित्य = वाण्यौचित्य 
  • सुधी + उपास्य = सुध्युपास्य 
  • दधि + ओदन = दध्योदन
  • जाति + अभिमान = जात्यभिमान 
  • गोपी+अर्थ = गोप्यर्थ

यण संधि के संकेत सूत्र (Yan Sandhi Ke Udaharan)

उ/ऊ+असमान स्वर = व्

  • शिशु+अंग = शिश्वंग
  • शिशु + एकता = शिश्वेकता 
  • मनु + आदेश = मन्वादेश 
  • मनु + इच्छा = मन्विच्छा
  • मनु+अंतर = मन्वंतर 
  • सु+अस्ति = स्वस्ति
  • सु+अल्प =  स्वल्प 
  • सुआ + देश = स्वादेश
  • सु+आकार = स्वाकार 
  • सु+आगत = स्वागत 
  • धातु + इक = धात्विक 
  • धातु (ब्रह्मा) + इच्छा  = धात्विच्छा

(विशेष- स्वस्थ, स्वार्थ, स्वाग, स्वाभिमान, स्वकीय, स्वाधीन शब्दों में ‘सु’ उपसर्ग नहीं

अपितु ‘स्व’ उपसर्ग है)

  • सम्+अनु+अय (समनु+अय) = समन्वय 
  • अनु + अय = अन्वय 
  • अनु + इत = अन्वित
  • अनु + आदेश = अन्वादेश
  • अनु + ईक्षण = अन्वीक्षण
  • अनु + एषण = अन्वेषण 
  • अनु + एषक = अन्वेषक 
  • अनु+ऋचा = अन्वृचा
  • अनु + इष्ट = अन्विष्ट
  • अनु + इति = अन्विति
  • अनु + ईक्षा = अन्वीक्षा
  • तनु+अंगी = तन्वंगी
  • अणु +अस्त्र = अण्वस्त्र
  • परमाणु + अस्त्र = परमाण्वस्त्र
  • परमाणु + आधार = परमाण्वाधार 
  • साधु + इच्छा = साध्विच्छा
  • साधु + आदेश =  साध्वादेश 
  • साधु + औदार्य = साध्वौदार्य 
  • साधु + आचार = साध्वाचार
  • मधु + इच्छा = मध्विच्छा 
  • मधु+अरि = मध्वरि 
  • मधु + ओदन = मध्वोदन
  • मधु + आचार्य = मध्वाचार्य
  • लघु + ओष्ठ = लघ्वोष्ठ 
  • वधू + आदेश = वध्वादेश 
  • वधू + इच्छा = वध्विच्छा
  • वधू + आगमन = वध्वागमन
  • सरयू + अम्बु = सरय्वम्बु 
  • बहु + ऐश्वर्य = बह्वैश्वर्य
  • गुरु + ऋण = गुर्वृण
  • गुरु + आसन = गुर्वासन
  • गुरु + आज्ञा = गुर्वाज्ञा
  • गुरु + इच्छा =  गुर्विच्छा 
  • गुरु + आदेश = गुर्वादेश 
  • गुरु + ओदन = गुर्वोदन
  • धनु + आकार = धन्वाकार 
  • लघु + आकार = लघ्वाकार 
  • हेतु + आभास = हेत्वाभास

यण संधि के संकेत सूत्र (Yan Sandhi Ke Udaharan)

ऋ+असमान स्वर = र्

  • वक्तृ + उद्‌द्योधन = वक्त्रुद्बोदन 
  • वक्तृ + इच्छा = वक्त्रिच्छा
  • दातृ + इच्छा = दात्रिच्छा
  • दातृ+उत्कंठा = दात्रुत्कंठा 
  • दातृ + उदारता = दात्रुदारता 
  • दातृ + आदेश = दात्रादेश 
  • धातू + अंश =  धात्रंश 
  • धातृ + इच्छा = धात्रिच्छा 
  • भ्रातृ + आदेश = भ्रात्रादेश
  • भ्रातृ + इच्छा = भ्रात्रिच्छा 
  • मातृ + अनुमति = मात्रनुमति
  • मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा 
  • मातृ + अर्थ = मात्रर्थ 
  • मातृ + आदेश = मात्रादेश 
  • मातृ + आनंद = मात्रानंद 
  • पितृ + अनुमति = पित्रनुमति 
  • पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा 
  • पितृ + उत्सुकता = पित्रुत्सुकता 
  • पित्+उपदेश = पित्रुपदेश
  • पितृ +औत्सुकता = पित्रौत्सुकता 
  • जामातृ + इच्छा = जामात्रिच्छा 
  • स्वस्+अनुमति = स्वस्रनुमनि

संस्कृत में यण संधि का क्या सूत्र है? (sanskrit me yan sandhi ka sutra)

यण संधि का सूत्र – इकोयणचि”

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