व्यंजन संधि की परिभाषा : नियम व उदाहरण सहित

व्यंजन संधि की परिभाषा – इस लेख में हम आपको व्यंजन संधि के बारे में विस्तार से बताएंगे, जिसमें आपको व्यंजन संधि की परिभाषा, नियम व प्रकार और उदाहरण बताये जाएंगे।

व्यंजन संधि की परिभाषा (vyanjan sandhi kise kahate hain)

वह ध्वनि विकार (परिवर्तन) जो परस्पर दो वर्ग के (स्वर+व्यंजन, व्यंजन+स्वर, व्यंजन+व्यंजन) मेल से उत्पन्न होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं

व्यंजन संधि के नियम – व्यंजन संधि के नियम इस प्रकार है|

1. किसी वर्ग अर्थात् क,च,ट,त,प के प्रथम वर्ग के बाद यदि कोई स्वर या वर्ग का तीसरा, चौथा सघोष व्यंजन (ड् ,ञ ,ण ,न,म) को छोड़कर अथवा य,र,ल,व, ह में से कोई वर्ण आये तो पहला वर्ण उसी वर्ग का तीसरा वर्ण(ग,ज,ड,द,ब) हो जाता है-

व्यंजन संधि के 100 उदाहरण

  • दिक्+अंबर = दिगंबर
  • दिक्+दर्शन = दिग्दर्शन
  • वाक् + ईश्वर = वागीश्वर
  • वणिक + वर्ग = वणिग्वर्ग
  • प्राक् + ऐतिहासिक = प्रागैतिहासिक
  • वाक्+ईश = वागीश
  • दिक्+अंत = दिगंत
  • दृक्+अंचल = दृगंचल
  • वाक्+दान = वाग्दान
  • वाक्+जाल = वाग्जाल
  • दिक्+भ्रम = दिग्भ्रम
  • ऋक्+वेद = ऋग्वेद
  • वाक् + व्रज = वाग्व्रज
  • अच्+अंत = अजंत
  • षट्+अंग = षडंग
  • षट्+अक्षर = षडक्षर
  • षट्+आनन = षड़ानन
  • षट्+दर्शन = शड् दर्शन
  • षट्+विकार = षड्विकार
  • षट्+यन्त्र = षड्यन्त्र
  • षट् + गुण = षड्गुण
  • षट्+रस = षड्ररस
  • जगत्+अम्बा = जगदम्बा
  • सत्+आशय = सदाशय
  • सत्+आनन्द = सदानन्द
  • सत्+आचार = सदाचार
  • चित्+अणु = चिदणु
  • तत्+इच्छा = तदिच्छा
  • उत्+अय = उदय
  • कृत्+अन्त = कृदन्त
  • सच्चित् (सत्+चित) + आनंद = सच्चिदानन्द
  • सत्+आत्मा = सदात्मा
  • पंच+आब = पंजाब
  • सत्+इच्छा = सदिच्छा
  • जगत्+ईश = जगदीश
  • भवत् + ईय = भवदीय
  • सत्+गति=सद्गति
  • जगत+गुरु = जगद्गुरु
  • भगवत्+ गीता = भगवद्गीता
  • सत्+भाव = सद्भाव
  • चित्+रूप = चिद्रूप
  • चित्+विलास = चिविलास
  • सत्+वेग = सद्वेग
  • सत्+व्यवहार = सद्व्यवहार
  • अप+ज = अब्ज
  • अप्+द = अब्द

2. किसी वर्ग के प्रथम एवं तृतीय वर्ण के बाद यदि किसी वर्ग का पाँचवां वर्ण हो तो प्रथम एवं तृतीय वर्ण पाँचवां वर्ण हो जाता है।

  • वाक्+निपुण = वाड्निपुण
  • वाक्+मय = वाड्मय
  • षट्+मास = षण्मास
  • जगत्+ नाथ = जगन्नाथ
  • अप+मय = अम्मय
  • दिक्+नाग = दिड्नाग
  • दिक् + मण्डल = दिड्मण्डल
  • षट्+मूर्ति = षण्मूर्ति
  • प्राक्+मुख = प्राङ्मुख
  • उत्+नति = उन्नति
  • उत्+ मूलन = उन्मूलन

व्यंजन संधि के 10 उदाहरण (व्यंजन संधि की परिभाषा)

  • जगत्+माता = जगन्माता
  • उत्+ नायक = उन्नायक
  • विद्वत्+ मण्डली = विद्वन्मण्डली
  • भवत्+निष्ठ = भवन्निष्ठ
  • सत्+मान = सन्मान
  • चित्+मय = चिन्मय
  • उद्+नत = उन्नत
  • तद्+मय = तन्मय
  • उद्+मेष = उन्मेष
  • अप+मय = अम्मय

3. म के बाद यदि क से म तक का कोई वर्ण होता है, तो म का अनुस्वार अथवा बाद वाले वर्ण का पाँचवां हो जाता है-

व्यंजन संधि के 10 उदाहरण (Vyanjan Saandhi Ke Udahran)

  • सम्+कल्प = संकल्प
  • सम्+चार = संचार
  • सम्+तोष = संतोष
  • सम्+पूर्ण = सम्पूर्ण
  • सम्बन्ध = सम्बन्ध
  • सम्+ख्या = संख्या
  • सम्+ गम = संगम
  • सम्+घर्ष = संघर्ष
  • अलम्+कार = अलंकार
  • शम्+कर = शंकर
  • सम्+ गठन = संगठन
  • सम्+चय = संचय
  • किम्+चित् = किंचित
  • सम्+जीवन = संजीवन
  • किम्+चन = किंचन
  • मृत्युम्+जय = मृत्युंजय
  • सम्+चालन = संचालन
  • किम्+कर = किंकर
  • सम्+कलन = संकलन
  • अलम्+कृत = अलंकृत
  • अलम्+करण = अलंकरण
  • अहम् +कार = अहंकार
  • शुभम् +कर = शुभंकर
  • भयम्+कर = भयंकर
  • सम्+ गत = संगत
  • दिवम्+ गत = दिवंगत
  • सम्+घनन = संघनन
  • सम्+घात = संघात
  • सम्+चित = संचित
  • अकिम्+चन = अकिंचन
  • पम्+चम = पंचम
  • सम्+ताप = संताप
  • सम्+देह = संदेह
  • सम्+देश = संदेश
  • सम्+दिग्ध = संदिग्ध
  • सम्+धि = संधि
  • सम्+न्यासी = संन्यासी
  • परम्+तु = परन्तु
  • धुरम्+धर = धुरन्धर (धुरंधर)
  • किम्+नर = किन्नर (किंनर)

4. म के पश्चात् क से म के अतिरिक्त य,र,ल, व ऊष्म व्यंजन श,ष.स या क्ष. त्र.ज्ञ आते हैं तो म अनुस्वार में ही बदलेगा-

उदाहरण –

  • सम्+योग = संयोग
  • सम्+योजना = संयोजना
  • सम्+विधान = संविधान
  • सम्+रचना = संरचना
  • सम्+लग्न = संलग्न
  • सम्+वत् = संवत्
  • सम्+शय = संशय
  • किम्+वदंती = किंवदंती
  • स्वयम्+ वर = स्वयंवर
  • सम्+क्षेप = संक्षेप
  • सम्+त्रास = संत्रास
  • सम्+सार = संसार
  • सम्+श्लेषण = संश्लेषण
  • सम्+स्मरण = संस्मरण
  • किम्+वा = किंवा
  • सम्+शोधन = संशोधन
  • सम्+वाद = संवाद
  • सम्+सृति = संसृति
  • सम्+हार = संहार

व्यंजन संधि उदाहरण सहित (व्यंजन संधि की परिभाषा)

5. द् के बाद यदि अघोष व्यंजन क, ख,त,थ,प,फ,श,ष,स,ह के मेल होने पर द् का त् हो जाता है-

उदाहरण-

  • तद्+काल = तत्काल
  • उद्+कृष्ट = उत्कृष्ट
  • उद्+कट = उत्कट
  • संसद् + सदस्य = संसत्सदस्य
  • तद्+ पर = तत्पर
  • सद्+कार = सत्कार
  • शरद् +काल = शरत्काल
  • आपद्+काल = आपत्काल
  • उद्+तम = उत्तम
  • आपद्+ति = आपत्ति
  • उद्+पन्न = उत्पन्न
  • तद्+पुरुष = तत्पुरुष
  • उद्+सव = उत्सव
  • तद्+सम = तत्सम
  • उद्+सर्ग = उत्सर्ग

6. त् या द् के साथ च या छ के मेल पर त् या द् के स्थान पर च् बन जाता है-

उदाहरण –

  • उत्+छेद उच्छेद
  • उत्+चारण = उच्चारण
  • उत्+छिन्न = उच्छिन्न
  • वृहत्+चयन = वृहच्चयन
  • शरत्+चन्द्र = शरच्चन्द्र
  • सत्+चरित्र = सच्चरित्र
  • विद्युत + छटा = विद्युच्छटा

7. त् या द् के साथ ज या झ आने पर त् या द् के स्थान पर ज् हो जाता है-

उदाहरण-

  • उत्+ज्वल = उज्ज्वल
  • सत्+जन = सज्जन
  • जगत्+जीवन = जगज्जीवन
  • यावत्+ जीवन = यावज्जीवन
  • महत्+झंकार = महज्झंकार
  • उद्+जयिनी = उज्जयिनी
  • विपद्+जाल = विपज्जाल
  • तद्+जनित = तज्जनित

8. त् या द् के साथ ट या ठ के मेल पर त् या द् के स्थान पर ट बन जाता है

उदाहरण

  • बृहत्+टीका = बृहट्टीका
  • तत्+टीक = तट्टीका
  • सत्+टीका = सट्टीका

9. त् या द् के साथ ‘ड’ या ढ़ के मेल पर त् या द् के स्थान पर ड् बन जाता है

उदाहरण

  • उद् + डयन = उड्डयन
  • भवत् + डमरू = भवड्डमरू

10. त् या द् के साथ ल के मेल पर त् या द के स्थान पर ल् बन जाता है-

उदाहरण

  • उत्+लास = उल्लास
  • तत्+लीन = तल्लीन
  • विद्युत+लेखा = विद्युल्लेखा
  • उत्+लंधन = उल्लंघन
  • भगवत्+लीन = भगवल्लीन
  • उत्+लेख = उल्लेख
  • विपद्+लीन = विपल्लीन

11. त् या द् के साथ ‘ह’ आने पर त् या द् के स्थान पर द् और ह के स्थान पर ध बन जाता है-

उदाहरण

  • पद्+हति = पद्धति
  • उत्+हरण = उद्धरण
  • तत्+हित = तद्धित
  • उत्+हार = उद्धार
  • उत्+हृत = उद्धृत

यदि पदान्त त् के परे ल,ज,न,ड, ट, च में से कोई एक वर्ण हो तो पदान्त त के स्थान पर वहीं वर्ण हो जाएगा जो त के परे है

  • त्+ल् = ल
  • त्+ज = ज
  • त्+न = न
  • त्+ड =ड
  • त्+र = र
  • त्+च = च
  • उत्+लास = उल्लास
  • उत्+नत = उन्नत

12. त् या द् के साथ ‘श’ के मेल पर त् या द् के स्थान पर च् तथा श् के स्थान पर छ हो जाता है-

उदाहरण

  • सत्+शास्त्र = सच्छास्त्र
  • उद्+श्रृंखल = उच्छृंखल
  • उत्+श्वास = उच्छ्वास
  • शरत्+शशि = शरच्छशि
  • उत्+शिष्ट = उच्छिष्ट
  • सत्+शासन = सच्छासन
  • जगत्+शांति = जगच्छांति
  • उद्+श्वसन = उच्छ्वसन
  • उद्+शास्त्र = उच्छास्त्र

13. स्वर के साथ ‘छ’ आने पर स्वर तथा ‘छ’ के बीच ‘च’ आ जाता है-

उदाहरण

  • स्व + छंद = स्वच्छंद
  • अनु+छेद = अनुच्छेद
  • परि+छेद = परिच्छेद
  • वि+छेद = विच्छेद
  • एक + छत्र = एकच्छत्र
  • तरू+छाया = तरूच्छाया
  • आ+छादन = आच्छादन
  • पद+छेद = पदच्छेद
  • अंग+छेद = अंगच्छेद
  • आ+छन्न = आच्छन्न

14. अ अथवा आ से इतर अन्य किसी भी स्वर के साथ ‘स’ के मेल पर ‘स’ के स्थान पर ‘ष’ बन जाता हैं। दन्त्य ‘स’ मूर्धन्य ‘ष’ में बदल जाता है (अकार अथवा आकार को छोड़कर)

उदाहरण

  • अभि+सेक = अभिषेक
  • वि+साद = विषाद
  • नि+सेध = निषेध
  • सु+सुप्त = सुषुप्त
  • अभि+सिक्त = अभिषिक्त
  • अनु+संग = अनुषंग
  • नि+स्था = निष्ठा
  • नि+स्थुर = निष्ठुर
  • अधि+स्थाता = अधिष्ठाता
  • प्रति+स्था = प्रतिष्ठा
  • परि+सद् = परिषद्
  • प्रति+सेध = प्रतिषेध
  • नि+संग = निषंग
  • वि+सन्न = विषण्ण
  • नि+स्नात = निष्णात
  • सु+समा = सुषमा
  • अनु+स्थान = अनुष्ठान
  • अनु+संगी = अनुषंगी
  • उपनि+सद् = उपनिषद्
  • नि+सिद्ध = निषिद्ध

15. शब्द में कहीं भी ऋ,र या श हो एवं उसके साथ मिलने वाले शब्द में कहीं भी ‘न’ हो तथा उन दोनों के बीच कोई स्वर तथा क, ख, ग, घ,प, फ, ब, भ,म,य,र,ल,व में से कोई वर्ण हो तो संधि होने पर ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है-

उदाहरण

  • क्रीड़ा+अंगन = क्रीड़ागंण
  • प्रसार + न = प्रसारण
  • उत्तर+अयन = उत्तरायण
  • राम+अयन = रामायण
  • नार+अयन = नारायण
  • भूष्+अन = भूषण
  • भर्+अन = भरण
  • ऋ+न = ऋण
  • कृष+न = कृष्ण
  • उष्+न = उष्ण
  • तृष+ना = तृष्णा
  • परि+नत = परिणत
  • प्र+आन = प्राण
  • प्र+यान = प्रयाण
  • पोष्+अन = पोषण
  • मर्+अन = मरण
  • प्र+न = प्रण
  • तृ+न = तृण
  • परि+मान = परिमाण
  • प्र+अंगन = प्रांगण
  • प्र+नाम = प्रणाम
  • पुरा+न = पुराण
  • विष्+नु = विष्णु

16. ष के बाद त् या थ आते हैं तो त् के स्थान पर ट् तथा थ् के स्थान पर ठ् हो जाता है

उदाहरण

  • निकृष्+त = निकृष्ट
  • आकृष्+त = आकृष्ट
  • हृष् + त = हृष्ट
  • पुष्+त = पुष्ट
  • षष्थ = षष्ठ
  • तुष्+त = तुष्ठ

17. दुस् और निस् दन्त्य ध्वनियों के पहले आते हैं, तो संधि नहीं बनती, क्योंकि इनके रूप मे कोई परिवर्तन नहीं होता है। ध्वनि परिवर्तन नहीं होने के कारण संधि नहीं बनती है, संयोग ही होता है।

उदाहरण

  • निस्+स्वार्थ = निस्वार्थ
  • निस्+सार = निस्सार
  • निस्+तार = निस्तार
  • निस्+संदेह = निस्संदेह
  • दुस्+सह = दुस्सह

18. दुस् व निस् के बाद च,छ,श आते हैं, तो दुस् के स्थान पर दुश एवं निस् के स्थान पर निश् हो जाता है-

उदाहरण

  • दुस्+शासन = दुश्शासन
  • दुस्+चरित्र = दुश्चरित्र
  • दुस्+शील = दुश्शील
  • निस्+चय = निश्चय
  • निस्+चिंत = निश्चित

19. दुस् एव निस् के बाद क,प,फ आते हैं तो दुस् का दुष होता है तथा निस् का निष् हो जाता है-

उदाहरण

  • दुस्+काल = दुष्काल
  • दुस्+कर्म = दुष्कर्म
  • निस्+कंटक = निष्कंटक
  • निस्+क्रमण = निष्क्रमण
  • निस्+कपट = निष्कपट
  • निस्+क्रिय = निष्क्रिय
  • निस्+काम = निष्काम
  • दुस्+कर = दुष्कर
  • दुस्+फल = दुष्फल
  • निस्+पाप = निष्पाप
  • निस्+पक्ष = निष्पक्ष
  • निस्+पति = निष्पत्ति

20. सम् उपसर्ग के बाद कृ धातु से बने शब्द कृत,कार,कृति,करण, कर्ता आते हैं तो दंत्य स् का आगमन हो जाता है

उदाहरण

  • सम्+कार = संस्कार
  • सम्+करण = संस्करण
  • सम्+कृत = संस्कृत
  • सम्+कर्त्ता = संस्कर्ता

21 ‘परि के बाद कृत, कार, कृति, करण, कर्ता आते हैं, तो मूर्धन्य ‘ष’ आता है। परि के इ स्वर के कारण मूर्धन्य ष होता है-

उदाहरण

  • परि+कृत = परिष्कृत
  • परि+करण = परिष्करण
  • परि+कार = परिष्कार
  • परि+कृति = परिष्कृति

22. कुछ शब्दों के साथ अन्य शब्दों का मेल होने पर प्रथम शब्द के अन्तिम (न्,स्) का लोप हो जाता है। जैसे- आत्मन्, पक्षिन्, पाणिन्, युवन् आदि शब्दों का ‘न’ लुप्त हो जाता है-

उदाहरण-

  • युवन्+अवस्था = युवावस्था
  • राजन् + गृह = राजगृह
  • आत्मन् + हंता = आत्महंता-
  • मंत्रिन्+मंडल = मंत्रिमंडल
  • स्वामिन्+भक्त = स्वामिभक्त
  • प्राणिन्+मात्र = प्राणीमात्र
  • प्राणिन् + विज्ञान = प्राणी विज्ञान
  • पक्षिन्+राज = पक्षि राज
  • युवन्+वाणी = युववाणी
  • योगिन + ईश्वर = योगीश्वर
  • राजन् + ऋषि = राजर्षि

23. दुर और निर् के बाद ए आए तो दूर का दू तथा निर् का नी हो जाता है। पहले से ‘र’ होने के कारण उपर्सग के ‘र’ का लोप हो जाता है तथा ‘नि’ एवं ‘दु’ का हस्व स्वर दीर्घ हो जाता है-

उदाहरण

  • निर्+रव = नीरव
  • निर्+रंध्र = नीरंध्र
  • निर् + रस = नीरस
  • दुर्+राज = दूरात
  • निर्+रोग = नीरोग

24. अन्तर और पुनर् उपसर्गों के बाद अघोष ध्वनि आती है तो विकल्प से या तो र् विसर्ग (:) में बदल जाता है या दंत्य ध्वनियों (त्,स्) से पहले स् में और तालव्य ध्वनियों (च,श) से पहले तालव्य श् में बदल जाता है-

उदाहरण

  • अंतर्+स्राव = अन्तःस्राव
  • अंतर्+करण = अंतःकरण
  • अन्तर्कथा = अंतःकथा
  • अन्तर्+पुर = अंतःपुर
  • अन्तर्+क्रिया = अंतःक्रिया
  • पुनर्प्रसारण = पुनः प्रसारण
  • पुनर्प्रेषण = पुनः प्रेषण

25. अहन् शब्द के बाद र् को छोड़कर अन्य कोई वर्ण आता है तो अहर् हो जाता है तथा र आता है तो अहो हो जाता है अर्थात् न् का र् रा उन्नतत्र व रूप आने पर न् का ओ हो जाता है। इस परिवर्तन को निपात भी कहते हैं-

  • अहन्+निशा = अहर्निश
  • अहन्+मुख = अहर्मुख
  • अहन्+रात्रि = अहोरात्रि
  • अहन्+रूप = अहोरूप
  1. व्यंजन संधि किसे कहते हैं ? (vyanjan sandhi kise kahate hain)

    वह ध्वनि विकार (परिवर्तन) जो परस्पर दो वर्ग के (स्वर+व्यंजन, व्यंजन+स्वर, व्यंजन+व्यंजन) मेल से उत्पन्न होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं

आशा करते हैं कि आपको इस ब्लॉग से आपको व्यंजन संधि की परिभाषा के(vyanjan sandhi kise kahate hain) बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई होगी संधि से जुड़े हुए अन्य महत्वपूर्ण और रोचक ब्लॉग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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