Samas Ki Paribhasha | समास की परिभाषा aur uske bhed

इस लेख में हम आपको समास की परिभाषा (samas ki paribhasha aur uske bhed) के बारे में विस्तार से बताएंगे, जिसमें आपको नियम, भेद और उदाहरण बताये जाएंगे।

Table of Contents

समास की परिभाषा (Samas Ki Paribhasha)

दो या दो से अधिक शब्दों के योग को समास कहते हैं। दो पदों के मेल से जो नया शब्द बनता है उसे समस्त पद या सामासिक पद कहते हैं। समास का शाब्दिक अर्थ ‘संक्षेप’ या ‘सम्मिलन है। दो या दो से अधिक पद जब अपने विभक्ति-चिह्न या अन्य शब्दों को छोड़कर एक पद बन जाते हैं तो समास कहते हैं।

इस प्रक्रिया से बने शब्द को सामासिक शब्द कहते हैं। सामासिक शब्दों को समस्त पद भी कहा जाता है। इस प्रकार के पदों में कभी प्रथम पद प्रधान हो जाता है तथा कभी दोनों गौण हो जाने पर नया अर्थ उत्पन्न हो जाता है। शब्दों के संक्षिप्त रूप को ही समास कहते हैं। सम का शाब्दिक अर्थ होता है भली प्रकार से तथा आस का शाब्दिक अर्थ होता हैं निवास। दो पदों को पास-पास लाकर सम्बन्ध कर देने की प्रक्रिया को समास कहते हैं।

समास छः प्रकार के होते हैं-

1. अव्ययीभाव समास

जिस समस्त पद का प्रथम पद प्रधान होता है तथा अव्यय होता है (इस प्रकार के शब्द जिनमें लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार परिवर्तन नहीं होता है, उन्हें अव्यय कहते हैं। इस प्रकार अव्ययी भाव समास में समस्त पद अव्ययी रूप ही होता है। इसके दो प्रकार होते हैं (1) अव्ययी पद पूर्व (2) नामपद पूर्व प्रथम पद अव्यय समास में पहला पद अव्यय होता है, जिसमें उपसर्ग सम्मिलित हैं।

नामपद पूर्व समास में प्रथम पद अव्यय या उपसर्ग न होकर संज्ञा या विशेषण होता है। यह संज्ञा एवं विशेषण शब्द अव्ययी भाव समास में प्रयुक्त होने पर अपना रूप नहीं बदलते हैं-

अव्ययीभाव समास के उदाहरण

अव्यय पद पूर्व

  • यथा शक्ति = शक्ति के अनुसार 
  • प्रतिदिन = प्रत्येक दिन 
  • यथाशीघ्र = जितना शीघ्र हो 
  • यथा क्रम = क्रम के अनुसार

अव्ययीभाव समास के 50 उदाहरण

  • यथास्थान = जो स्थान निर्धारित है 
  • यथोचित = जैसा उचित है वैसा 
  • यथा स्थिति = जैसी स्थिति है 
  • यथा योग्य = जो योग्य है जितना
  • यथा विधि = विधि के अनुसार
  • यथावसर = अवसर के अनुसार
  • यथेच्छ = इच्छा के अनुसार 
  • प्रत्यक्ष = आँख के आगे 
  • प्रतिमास = हर मास 
  • समक्ष = आँखों के सामने 
  • आमरण = मृत्यु तक 
  • अकारण = बिना कारण के
  • आजीवन = जीवन पर्यन्त 
  • अनुसार = सार के अनुसार
  • आजानुबाहु = घुटनों से बाहु तक 
  • यथा सम्भव = सम्भव के अनुसार
  • यथा समय = समय के अनुसार 
  • यथा साध्य = जितना साधा जा सके
  • यथानुरूप = उसी के अनुरूप
  • प्रतिध्वनि = ध्वनि से उत्पन्न ध्वनि 
  • प्रतिक्षण = हर क्षण 
  • अनुकूल = जैसा कूल है उसके अनुसार 
  • निर्विवाद = बिना विवाद के 
  • अनजाने = जो नहीं जानता 
  • प्रतिपल = प्रत्येक पल 
  • अभूतपूर्व = जो पूर्व में नहीं
  • अनुरूप = जैसा रूप
  • आजन्म = जन्म से
  • अनुकृति = जैसी आकृति है
  • आपाद मस्तक = पैरो से मस्तिष्क तक
  • निडर = भय हीन
  • बे चैन = बिना चैन के
  • ना लायक = जो लायक नहीं है
  • दर हकीकत = हकीकत में
  • दर असल = वास्तव में
  • आ समुद्र = समुद्र पर्यन्त
  • बाकायदा = कायदा सहित
  • भरसक = सामर्थ्य के अनुसार
  • हर रोज = प्रत्येक दिन
  • अति वृष्टि = वृष्टि की अति
  • अत्यल्प = बहुत कम
  • प्रतिक्रिया = क्रिया से प्रेरित क्रिया
  • प्रत्युत्तर = उत्तर का उत्तर
  • प्रतिलिपि = लिपि की लिपि
  • प्रतिद्वन्द्वी = सघर्ष करने वाले का विरोधी
  • प्रत्याशा = आशा के बदले आशा
  • अनुदान = दान के बदले दान
  • अनुबन्ध = बंध की तरह बाधना
  • नियोग = अच्छा योग
  • नीरोग = रोग रहित
  • नियमन = ठीक प्रकार के नियम
  • सावधान = अवधान के साथ
  • जीवन भर = सम्पूर्ण जीवन’
  • अनाम = नाम से हीन
  • दिन भर = पूरे दिन
  • भर पेट = पेट भरकर
  • हर पल = प्रत्येक पल
  • हर वर्ष = प्रति वर्ष

अव्ययीभाव समास के 10 उदाहरण

  • अवसरानुसार = अवसर के अनुसार
  • ध्यानपूर्वक = ध्यान के साथ
  • अतिसार = सार की अति
  • अत्याचार = आचार का अतिक्रमण
  • अनुसरण = सरण के बाद सरण
  • अनुकरण = किए गये के अनुसार करना
  • अनुमान = मान के अनुसार
  • मारामारी = मार के बाद मार
  • पहलेपहल = सबसे पहले
  • लूटम लूट = लूट के बाद लूट

पहला पद नाम पद (अव्ययीभाव समास) 

  • घर-घर =  घर के बाद घर
  • हाथों-हाथ = हाथ के बाद हाथ
  • दिनों-दिन = दिन के बाद दिन
  • साफ-साफ = साफ के बाद साफ
  • बार-बार = बार के बाद बार
  • बीचों-बीच = बीच के भी बीच
  • बारंबार = बार-बार
  • एक-एक = एक के बाद एक
  • घड़ी – घड़ी = घड़ी के बाद घड़ी

इस प्रकार जिसका प्रथम पद प्रधान होता है। प्रधान पद से तात्पर्य वह पद जिसके बिना निश्चित अर्थ की प्राप्ति नहीं होती है, प्रधान पद कहलाता हैं। अन्, अ,ना,कु, सु,दुर, दुस उपसर्गों को छोड़कर शेष सभी उपसर्गों से बनने वाले शब्द अव्ययी भाव समास के उदाहरण होते हैं।

2. तत्पुरुष समास

तत्पुरुष समास में प्रथम पद संज्ञा तथा द्वितीय पद (पर पद) प्रधान होता है। दोनों पदों के मध्य कारक की विभक्तियाँ लुप्त होती हैं। कर्त्ता एवं सम्बोधन (ने,हे,ओ,अरे) को छोड़कर शेष विभक्यिाँ लुप्त होती हैं। इस प्रकार तत्पुरुष समास में कारक की विभक्ति रहती है परन्तु समस्त पद में उसका लोप हो जाता है।

तत्पुरुष समास के निम्नलिखित भेद हैं-

 1. कर्म तत्पुरुष  (को)

जहां पूर्व पद में कर्म कारक की विभक्ति का लोप होता है वहाँ कर्म तत्पुरुष होता है। 

तत्पुरुष समास के 20 उदाहरण

  • नेत्र सुखद = नेत्रों को सुखद
  • वन गमन = वन को गमन 
  • जेब कतरा = जेब को कतरने वाला
  • प्राप्तोदक = उदक को प्राप्त
  • कृष्णार्पण = कृष्ण को अर्पण
  • सिरतोड़ = सिर को तोडने वाला 
  • सुख प्राप्त = सुख को प्राप्त
  • माखन चोर = माखन को चुराने वाला
  • पतित पावन = पतितों को पवित्र करने वाला
  • जितेंद्रिय = इंद्रियों को जीतने वाला 
  • स्वर्ग प्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
  • शरणागत = शरण को आया
  • चिड़ीमार = चिड़ी को मारने वाला
  • ध्यानातीत = ध्यान को अतीत
  • आदर्शोन्मुख = आदर्श को उन्मुख
  • कमर तोड़ = कमर को तोड़ने वाला
  • मनोहर = मन को हरने वाला
  • यश प्राप्त = यश को प्राप्त
  • ग्रन्थ कार = ग्रंथ को रचने वाला
  • कोशकार = कोश को करने वाला
  • काठ फोड़ा = काठ को फोड़ने वाला
  • विद्याधर = विद्या को धारण करने वाला
  • मरणातुर = मरने को आतुर
  • सर्वप्रिय = सबको प्रिय
  • परलोक गमन = परलोक को गमन
  • गिरह कट = गिरह को काटने वाला
  • जन प्रिय = जन को प्रिय
  • स्वर्ग गत = स्वर्ग को गया
  • गृहागत = गृह को आगत
  • रोजगारोन्मुख = रोजगार को उन्मुख
  • खड्गधर = खड्ग को धारण
  • पक्ष धर = पक्ष को धारण
  • कार्योन्मुख = कार्य को उन्मुख
  • वय प्राप्त = वय को प्राप्त
  • विकासोन्मुख = विकास को उन्मुख
  • व्यक्ति गत = व्यक्ति को गत

2. करण तत्पुरुष :- से, के द्वारा

  • तुलसी कृत = तुलसी द्वारा कृत
  • मदांध = मद से अन्धा
  • रेखांकित = रेखा से अंकित
  • हस्तलिखित = हस्त द्वारा लिखित
  • दोष पूर्ण = दोष से पूर्ण 
  • ईश्वर-प्रदत्त = ईश्वर से प्रदत्त
  • दयार्द्र = दया से आर्द्र 
  • रत्नजडित = रत्नों से जड़ित 
  • आँखों देखी = आँखों से देखी 
  • स्व रचित = स्व द्वारा रचित 
  • अकाल पीड़ित = अकाल से पीडित
  • प्रेमातुर = प्रेम से आतुर
  • वाग्दता = वाणी द्वारा दत्त 
  • नेत्र हीन = नेत्र से हीन 
  • अश्रुपूर्ण = अश्रु से पूर्ण 
  • मेघाच्छन्न = मेघ से आच्छन्न
  • रसभरा = रस से भरा
  • नीतियुक्त = नीति से युक्त
  • कार्यमुक्त = कार्य से मुक्त

तत्पुरुष समास के 10 उदाहरण

  • गुणयुक्त = गुण से युक्त
  • क्षुधातुर = क्षुधा से आतुर
  • रोग पीड़िता = रोग से पीड़िता
  • महिमा मंडित = महिमा से मंडित
  • बस यात्रा = बस द्वारा यात्रा
  • प्रतीक्षातुर = प्रतीक्षा से आतुर
  • स्वचिंतन = स्वयं द्वारा चिंतन
  • मन मानी = मन से मानी हुई
  • शोका कुल = शोक से आकुल
  • जलसिक्त = जल से सिक्त

3. सम्प्रदान तत्पुरुष – (के लिए) 

  • सभा भवन = सभा के लिए भवन
  • हवन सामग्री = हवन के लिए सामग्री
  • विद्यालय = विद्या के लिए आलय
  • बलिपशु = बलि के लिए पशु
  • गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
  • आराम कुर्सी = आराम के लिए कुर्सी
  • यज्ञशाला = यज्ञ के लिए शाला
  • पुण्यदान = पुण्य के लिए दान
  • युद्धाभ्यास = युद्ध के लिए अभ्यास
  • परीक्षा केन्द्र = परीक्षा के लिए केन्द्र
  • हथकड़ी = हाथ के लिए कड़ी
  • प्रतीक्षालय = प्रतीक्षा के लिए आलय
  • सत्याग्रह = सत्य के लिए आग्रह
  • देश भक्ति = देश के लिए भक्ति
  • रसोई घर = रसोई के लिए घर
  • कर्ण फूल = कानों के लिए फूल
  • रण क्षेत्र = रण के लिए क्षेत्र
  • रोकड़बही = रोकड़ के लिए बही

संप्रदान तत्पुरुष समास के 10 उदाहरण

  • न्यायालय = न्याय के लिए आलय 
  • विधान सभा = विधान के लिए सभा 
  • रन वास = रानियों के लिए आवास 
  • शपथ पत्र = शपथ के लिए पत्र
  • माल गोदाम = माल के लिए गोदाम 
  • पुत्रशोक = पुत्र के लिए शोक
  • जन हित = जन के लिए हित
  • घर खर्च = घर के लिए खर्च
  • स्नानागार = स्नान के लिए आगार
  • कृषि भवन = कृषि के लिए भवन

4. अपादान तत्पुरुष = से अलग

  • धनहीन = धन से हीन
  • भयभीत = भय से भीत
  • पथ भ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
  • आशातीत = आशा से अतीत
  • देश निकाला = देश से निकाला
  • धर्म विमुख = धर्म से विमुख
  • जातिच्युत = जाति से च्युत
  • लक्ष्य भ्रष्ट = लक्ष्य से भ्रष्ट
  • आवरण हीन = आवरण से हीन
  • अभियोग मुक्त = अभियोग से मुक्त
  • पाप मुक्त = पाप से मुक्त
  • गुण रहित = गुण से रहित
  • लोकोतर = लोक से परे
  • बन्धन मुक्त = बन्धन से मुक्त
  • पदच्युत = पद से च्युत
  • काम चोर = काम से चोरी करने वाला
  • सेवा निवृत = सेवा से निवृत
  • दूरागत = दूर से आगत
  • हृदयहीन = हृदय से हीन
  • भाग्यहीन = भाग्य से हीन
  • लाभ रहित = लाभ से रहित
  • गर्व शून्य = गर्व से शून्य
  • इंद्रियातीत = इंद्रियों से अतीत
  • विवाहेतर = विवाह से इतर (अलग)
  • वीरविहीन = वीर से विहीन
  • शोभहीन = शोभ से हीन
  • नरकभय = नरक से भय
  • सत्ताच्युत = सत्ता से च्युत
  • जातबाहर = जाति से बाहर
  • अवसरवंचित = अवसर से वंचित
  • हतश्री = श्री से हत (शोभा से रहित)
  • आदिवासी = आदि से वास करने वाला
  • रोजगारवंचित = रोजगार से वंचित
  • शब्दातीत = शब्द से अतीत
  • नेत्रहीन = नेत्र से हीन 
  • जन्मोत्तर = जन्म से उत्तर 
  • कर्म भिन्न = कर्म से भिन्न
  • लोक विरूद्ध = लोक से विरूद्ध
  • धर्मभ्रष्ट = धर्म से भ्रष्ट
  • पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
  • रोगमुक्त = रोग से मुक्त
  • भयमुक्त = भय से मुक्त
  • रणविमुख = रण से विमुख

5. सम्बन्ध तत्पुरुष = का, के, की

  • रामचरित = राम का चरित
  • राजमाता = राजा की माता
  • अमचूर = आम का चूर्ण
  • प्रेम-सागर = प्रेम का सागर
  • मंत्रिपरिषद् = मन्त्रियों की परिषद्
  • जगन्नाथ = जगत् का नाथ
  • दुःखसागर = दुःख का सागर
  • मृत्युदंड = मृत्यु का दण्ड
  • शासनपद्धति = शासन की पद्धति
  • नरबलि = नर की बलि
  • राजसभा = राजा की सभा
  • गंगाजल = गंगा का जल
  • चन्द्रोदय = चन्द्र का उदय
  • अन्नदाता = अन्न का दाता
  • क्षमादान = क्षमा का दान
  • सेनानायक = सेना का नायक
  • देशभक्ति = देश की भक्ति
  • लोकहित = लोक का हित
  • भाग्य विधाता = भाग्य का विधाता
  • पूँजी-पति = पूँजी का पति
  • दिनचर्या = दिन की चर्या
  • लोकसभा = लोक की सभा
  • अमृतधारा = अमृत की धारा
  • प्रजापति = प्रजा का पति
  • सीमारेखा = सीमा की रेखा
  • जलपूर्ति = जल की पूर्ति
  • कनकघट = कनक का घट
  • विद्यादान = विद्या का दान
  • कर्मयोग = कर्म का योग
  • चर्मरोग = चर्म का रोग
  • जलधारा = जल की धारा
  • मतदाता = मत का दाता
  • सूर्योदय = सूर्य का उदय
  • गोदान = गो का दान
  • भूकंप = भू का कंपन
  • शांतिदूत = शांति का दूत
  • राजकुमार = राजा का कुमार
  • लखपति = लाखों का मालिक / पति
  • दीपशिखा = दीप की शिखा
  • कन्यादान = कन्या का दान
  • प्राणाहुति = प्राणों की आहुति
  • विश्वासपात्र = विश्वास का पात्र
  • दृष्टिकोण = दृष्टि का कोण
  • ग्रंथावलि = ग्रंथों की अवली
  • सोमवार = सोम का वार
  • पत्रोत्तर = पत्र का उत्तर
  • सत्रावसान = सत्र का अवसान
  • मातृभाषा = मातृ की भाषा
  • रघुवंश = रधु का वश
  • नरेश = नर का ईश
  • मनोविकार = मन का विकार
  • आत्मज्ञान = आत्म का ज्ञान
  • सत्संगति = संत पुरुषों की संगति
  • सौरमंडल = सूर्य का मण्डल
  • राजकुमारी = राजा की कुमारी
  • दीनबन्धु = दीन का बन्धु

6. अधिकरण तत्पुरुष = में, पर

  • मुनिश्रेष्ठ = मुनियों में श्रेष्ठ
  • कविपुंगव = कवियों में पुगव
  • वनवास = वन में वास
  • जीवदया = जीवों पर दया
  • ध्यान-मग्न = ध्यान में मग्न
  • घुड़सवार = घोडों पर सवार
  • घृतान्न = घी में पका हुआ अन्न
  • दानवीर = दान में वीर
  • नरोत्तम = नरों में उत्तम
  • वाक्चातुर्य = वाक् में चातुर्य
  • रससिद्ध = रस में सिद्ध
  • काव्यनिपुण = काव्य में निपुण
  • तर्ककुशल = तर्क में कुशल
  • मनमौजी = मन में मौजी
  • कर्मरत = कर्म में रत
  • हरफनमौला = हर फन में मौला अर्थात् कार्य कुशल
  • कविराज कवियों में राजा
  • कर्मनिष्ठ = कर्म में निष्ठ
  • ईश्वराधीन = ईश्वर पर अधीन
  • कूपमंडूक = कूप का मंडूक 
  • देशाटन = देश में अटन
  • आत्मकेन्द्रित = आत्मा पर केन्द्रित
  • तल्लीन = उस मे लीन
  • स्वर्गवास = स्वर्ग मे वास
  • मनमौजी = मन में मौजी
  • कलाप्रवीण = कला में प्रवीण
  • पुरुषोत्तम = पुरुषों में उत्तम
  • गृहप्रवेश = गृह में प्रवेश
  • आपबीती = आप पर बीती
  • शिलालेख = शिला पर लिखा हुआ
  • स्नेहमग्न = स्नेह में मग्न

3. कर्मधारय समास (samas ki paribhasha aur uske bhed)

जिस समस्त पद का प्रथम पद विशेषण अर्थात् उपमान तथा द्वितीय पद विशेष्य अर्थात उपमेय होता है एवं द्वितीय पद का अर्थ प्रधान होता है, उसे कर्मधारय समास कहते हैं। इस प्रकार कर्मधारय समास वहाँ होता है. जहाँ पूर्व पद विशेषण और उत्तर पंद विशेष्य होता है. इस प्रकार पूर्व पद एवं उत्तर पद में उपमेय एवं उपमान का सम्बन्ध होता है।

उदाहरण

  • नीलपत्र = नीला है पत्र
  • सुविचार = अच्छा है जो विचार
  • महावीर = महान है जो वीर
  • पुरुषोत्तम = पुरुष है जो उत्तम
  • महापुरुष = महान है जो पुरुष
  • पीताम्बर = पीत है अम्बर
  • महाकवि = महान् है जो कवि
  • महौषधि = महान् है जो औषधि
  • लतादेह = लता के समान देह
  • चन्द्रमुख = चन्द्रमा के समान मुख
  • चरणकमल = कमल के समान चरण
  • घनश्याम = घन जैसा श्याम
  • महर्षि = महान् है जो ऋषि
  • अधमरा = आधा है जो मरा
  • कुमति = कुत्सित है जो मति
  • चरमसीमा = चरम है जो सीमा
  • लालमिर्च = लाल है जो मिर्च
  • कृष्णपक्ष = कृष्ण है जो पक्ष
  • विद्याधन = विद्या रूपी धन
  • क्रोधाग्नि = क्रोध रूपी अग्नि
  • भवसागर = भव रूपी सागर
  • वचनामृत = वचन रूपी अमृत
  • नरसिंह = नर और सिह दोनों
  • नीलोत्पल = नीला है जो उत्पल
  • शुभागमन = शुभ है जो आगमन
  • मन्दबुद्धि = मन्द है जो बुद्धि
  • महायुद्ध = महान है जो युद्ध
  • अधोमुख = अधः की ओर जिसका मुख
  • देहलता = देह रूपी लता
  • अधरपल्लव = पल्लव रूपी अधर
  • वचनामृत = वचन रूपी अमृत
  • राजीवलोचन = कमल के समान लोचन
  • वजहृदय = वज्र के समान हृदय
  • कमलाक्ष = कमल के समान अक्षि
  • सिंधुहृदय = सिन्धु क समान हृदय
  • नवयुवक = नव है जो युवक
  • सद्भावना = सत् है जो भावना
  • सज्जन = सत् है जो जन
  • खुशबू = अच्छी है जो गंध
  • प्रभुदयाल = दयालु है जो प्रभु
  • वीरबाला = वीर है जो बाला
  • सुयोग = अच्छा है जो योग
  • अल्पाहार = अल्प है जो आहार

कर्मधारय समास के 20 उदाहरण

  • सत्परामर्श = सत् है जो परामर्श
  • पिछवाड़ा = पीछे है जो वाड़ा 
  • गतांक = गत है जो अंक
  • हताश = हत है जिसकी आशा
  • परमाणु = परम है जो अणु 
  • अल्पसंख्यक = अल्प है जो संख्या में
  • बहुमूल्य = बहुत है जिसका मूल्य 
  • अकालमृत्यु = अकाल है जो मृत्यु 
  • व्यंग्यार्थ = व्यंग्य है जिस अर्थ में 
  • विशालबाहु = विशाल है जिसकी बाहुएँ 
  • अस्ताचल = अस्त होता है जिस अचल में 
  • एकाग्रचित = एकाग्र है जो चित 
  • उच्चायोग = उच्च है जो आयोग 
  • भलामानस = भला है जो मानस 
  • खाद्यान्न = खाद्य है जो अन्न 
  • कटूक्ति = कटु है उक्ति 
  • गुरुदेव = गुरु रूपी देव
  • शैलोन्नत = उन्नत है जो शैल
  • स्त्रीरत्न = रत्न सदृश है जो स्त्री
  • अधरपल्लव = पल्लव जैसे हैं अधर

4. द्वन्द्वसमास (dvandva samas ki paribhasha)

जिस समस्त पद में दोनों पद प्रधान होते हैं तथा दोनों पदों के बीच में ‘और’ अथवा ‘या’ का प्रयोग होता है। दोनों पदों को मिलाते समय मध्यस्थित योजक लुप्त हो जाता है। 

  • दूध-रोटी = दूध और रोटी
  • पढ़ा-लिखा = पढ़ा और लिखा 
  • फल-फूल = फल और फूल 
  • अन्न-जल अन्न और जल
  • देश-विदेश = देश और विदेश
  • हरि-हर = हरि और हर 
  • आगा-पीछा = आगे और पीछे 
  • कृष्णर्जुन = कृष्ण और अर्जुन
  • माता – पिता = माता और पिता
  • दाल-रोटी = दाल और रोटी
  • पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
  • शस्त्रास्त्र = शास्त्र और अस्त्र 
  • यशापयश = यश और अपयश 
  • अपना-पराया = अपना और पराया
  • मान-सम्मान = मान और सम्मान 
  • अमीर-गरीब =अमीर और गरीब 
  • नर-नारी = नर और नारी
  • रुपया-पैसा = रुपया और पैसा
  • जलवायु = जल और वायु
  • नील-लोहित = नीला और लोहित 
  • शीतोष्ण = शीत और उष्ण
  • धर्माधर्म = धर्म और अधर्म
  • सेठ – साहूकार = सेठ और साहूकार
  • हाथ-मुँह = हाथ और मुँह

द्वन्द्व समास के 10 उदाहरण

राम-लक्ष्मणराम और लक्ष्मण
धनुर्बाणधनुष और बाण
लोटा-डोर लोटा और डोर
खट-मीठाखट्टा और मीठा
घास-फूस घास और फूस
हरि-शंकरहरि और शंकर
गौरी-शंकर गौरी और शंकर
लोक-परलोकलोक और परलोक
घर-द्वार घर और द्वार
लव-कुशलव और कुश

इस समास में इस प्रकार के पद भी सम्मिलित होते हैं जिनके दोनों पद संख्या का बोध कराने वाले अर्थात दस-बीस, तीस-चालीस संख्या वाची होते हैं।

4.द्विगु समास

यह समास तत्पुरुष समास के भेद कर्मधार्य समास का उपभेद है अतः इस का भी द्वितीय पद प्रधान होता है, वहीं प्रथम पद संख्या का बोध कराने वाला अर्थात् संख्यावाचक होता है। इस समास में संख्या के योग में समास विग्रह करते समय समूह या समाहार शब्द का प्रयोग किया जाता है।

द्विगु समास के उदाहरण

  • त्रिलोक = तीन लोकों का समूह 
  • चौगुनी = चार गुनी 
  • नवरात्र = नव रात्रियों का समूह 
  • दोराह = दो राहों का समाहार
  • शतक = सौ का समाहार 
  • पक्षद्वय = दो पक्षों का समूह 
  • त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार 
  • त्रिरत्न = तीन रत्नों का समूह
  • संकलनत्रय = तीन का समाहार
  • चौमासा = चार मासों का समाहार
  • पंचामृत = पाँच अमृतों का समाहार 
  • पंचवटी = पाँच वटों का समाहार 
  • सप्ताह = सप्तअहों (दिन) का समाहार
  • सतसई = सात सौ का समाहार 
  • नवरत्न = नौ रत्नों का समूह
  • त्रिवेणी = तीन वेणियों का समाहार
  • तिराहा = तीन राहो का समाहार
  • इकट्ठा = एक जगह स्थित
  • त्रिभुवन = तीन भुवनों का समाहार
  • सतरंग = सात रंगों का समूह
  • चोपट = चार पटों के समूह वाली
  • चतुर्वेदी = चार वेदों को जानने वाला
  • तिमाही = तीन माह का समूह
  • चौखट = चार खूटों वाली
  • त्रिपाठी = तीन पाठों को जानने वाला
  • भुवनत्रय = तीन भुवनों का समाहार
  • सप्तर्षि = सात ऋषियों का समाहार
  • अष्ट सिद्धि = आठ सिद्धियों का समाहार
  • पंचपात्र = पांच पात्रों का समाहार
  • एकतरफा = एक ही तरफ है जो
  • त्रिमूर्ति = तीन मूर्तियों का समूह

द्विगु समास के 20 उदाहरण

  • चतुर्वर्ग = चार वर्गों का समूह
  • चौकड़ी = चार कड़ियों का समूह
  • इकलौता = एक ही है जो
  • दोपहर = दो पहर का समावेश
  • चवन्नी = चार अन्नियों का समूह
  • दुपट्टा = दो पट्टों का समूह
  • पाँच किलो = पाँच किलो का समाहार
  • दुमुँही = दो मुँहवाली (दो मुँह का समाहार)
  • तिरंगा = तीन रंगो का समूह
  • पंचनद = पाँच नदियों का समूह
  • दुगुना = दो बार गुना
  • दुपहिया = दो पहियों का समाहार
  • दुमट = दो प्रकार की मिट्टी
  • दुबारा = दो बार
  • शऋतु = छः ऋतुओं का समाहार
  • नौलखा = नौ लाख रुपये के मूल्य का
  • शतांश = शत अंश
  • दुमंजिला = दो हैं मंजिल
  • चौपाया = चार पैरों का समाहार 
  • दुसूती = दो सूतों का समूह

6. बहुव्रीहि समास (bahuvrihi samas ki paribhasha )

 जिस समस्त पद मे दोनों पदों को छोड़कर तीसरा पद प्रधान होता है। बहुव्रीहि समास में सामान्य अर्थ की अपेक्षा अन्य अर्थ की प्रधानता रहती है। बहुव्रीहि समास में विग्रह करते समय शाब्दिक विग्रह के साथ समास का रूढ़ अर्थ अर्थात् विशेष अर्थ भी बताना पड़ता है। इस प्रकार बहुव्रीहि समास में आए हुए पदों में से कोई भी पद प्रधान नहीं होता तथा पूरा समस्त पद कोई अन्य अर्थ देता है।

बहुव्रीहि समास के 50 उदाहरण

  • षड़ानन = छ आनन हैं जिसके वह (कार्तिकेय)
  • दशानन = दस आनन हैं जिसके (रावण)
  • चक्रधर = चक्र धारण करने वाला (श्री कृष्ण)
  • चतुर्भुज = चार भुजाएँ है जिसके (विष्णु) 
  • मोदकप्रिय = मोदक हैं जिसको प्रिय (गणेश) 
  • दीर्घ बाहु = लम्बी भुजाएँ जिसके वह 
  • अष्ट भुजा = आठ भुजा हैं जिसके वह 
  • एकदन्त = एक है जिसके दन्त (गणेश) 
  • ब्रजपाणि = जिसके हाथ में व्रज है (इन्द्र)
  • देवराज = वह जो देवों का राजा है (इन्द्र) 
  • नाकपति = वह जो स्वर्ग का मालिक है (इन्द्र) 
  • घनश्याम = घन जैसा श्याम है जो वह है (श्रीकृष्ण) 
  • सुग्रीव = सुन्दर है ग्रीवा जिसकी वह (राम के मित्र) 
  • आशुतोष = शीघ्र प्रसन्न होने वाला (शिव)
  • प्रमथ = जो पहले ही मथ देता है (कामदेव) 
  • गिरिधर = पर्वत को धारण करने वाला है जो (श्री कृष्ण)
  • मुरारि = मुर का अरि है जो वह (श्रीकृष्ण) 
  • नीलकंठ = नीला है जिसका कंठ (शिव)
  • महादेव = देवताओं में महान है जो (शिव)
  • मयूरवाहन = मयूर है जिसका वाहन (कार्तिकेय) 
  • वाल्मीकि = वाल्मीक से उत्पन्न है जो वह (वाल्मीकि)
  • दिगम्बर = दिशाएँ ही हैं जिसका अम्बर (दिगम्बर) 
  • जितेन्द्रिय = जीत ली है इन्द्रिया जिसने वह (जितेन्द्र)
  • अष्टाध्यायी = अष्ट अध्यायों की पुस्तक है जो वह (व्याकरण)
  • नन्दनंदन = नन्द के नन्दन है जो (श्री कृष्ण)
  • व्रजवल्लभ = वह जो ब्रज का वल्लभ है (श्री कृष्ण)
  • रतिकांत = वह जो रति का पति है (कामदेव)
  • मनोज = वह जो मन में जन्म लेता है मनोज (काम)
  • कुसुमशर = वह जिसके कुसुम के बाण है (कामदेव)
  • वक्रतुंड = जिसका तुंड वक है (गणेश)
  • चन्द्रमौलि = वह जिसके मस्तिष्क पर चन्द्र है (शिव)
  • पशुपति = पशुओं का स्वामी (शिव)
  • महेश्वर = महान् है जो ईश्वर वह (शिव)
  • वाग्देवी = वह जो वाक् की देवी है (सरस्वती)
  • प‌द्मासना = कमल है जिसका आसन् (लक्ष्मी और सरस्वती)
  • वज्रांग = वह जिसका अंग व्रज का है (हनुमान)
  • कपीश्वर = वह है जो बन्दरों के ईश्वर (हनुमान)
  • इन्दुशेखर = जिसके सिर पर चन्द्रमा है (शिव) 
  • पद्मनाभ = जिसकी नाभि में कमल है (विष्णु)
  • गुरुड़ध्वज = जिनके गरुड़ का ध्वज है (विष्णु)
  • हृषिकेश = जो इन्द्रियों के ईश है (विष्णु) 
  • शेषशायी = जो शेषनाग पर शयन करते है (विष्णु) 
  • धनंजय = वह जो धन को जय करता है (अर्जुन)
  • हिमतनया = वह जो हिम की पुत्री है (पार्वती)
  • वाचस्पति = ब्रह्मा, बृहस्पति, ईश्वर सरस्वती 
  • सिंहवाहिनी = जिसके सिंह का वाहन है (दुर्गा) 
  • दुर्वासा = वह जो बुरे वस्त्र पहनता है (एक ऋषि) 
  • वंशीधर = वंशी को धारण करने वाला (श्रीकृष्ण)
  • शुभ्रवसना = शुभ्र है वस्त्र जिसके वह (सरस्वती)
  • चन्द्रभाल = चन्द्र है भाल पर जिसके वह (शंकर)
  • सबल = बल के साथ है जो वह (शक्तिशाली)
  • उदारचेता = उदार है चित जिसका वह (उदारचेता)
  • पीनोरू = बड़ी हैं जांघे जिसकी (भीम)
  • मेघनाद = मेघों के समान गर्जना है जिसकी (रावण का पुत्र)
  • दशग्रीव = दस है ग्रीवा जिसकी (रावण)
  • त्रिजटा = तीन हैं जटा जिसके (एक राक्षसी) 
  • भूमिजा = भूमि से उत्पन्न है जो (सीता)
  1. अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं

    जिस समस्त पद का प्रथम पद प्रधान होता है तथा अव्यय होता है (इस प्रकार के शब्द जिनमें लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार परिवर्तन नहीं होता है. उन्हें अव्यय कहते हैं।

  2. तत्पुरुष समास किसे कहते हैं

    तत्पुरुष समास में प्रथम पद संज्ञा तथा द्वितीय पद (पर पद) प्रधान होता है। दोनों पदों के मध्य कारक की विभक्तियाँ लुप्त होती हैं। कर्त्ता एवं सम्बोधन (ने,हे,ओ,अरे) को छोड़कर शेष विभक्यिाँ लुप्त होती हैं। इस प्रकार तत्पुरुष समास में कारक की विभक्ति रहती है परन्तु समस्त पद में उसका लोप हो जाता है।

आशा करते हैं कि आपको इस ब्लॉग से आपको समास की परिभाषा (samas ki paribhasha aur uske bhed) के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई होगी अन्य महत्वपूर्ण और रोचक ब्लॉग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

इसके साथ आप हमारे अन्य ब्लॉग को पढ़ सकते है जिसकी लिंक निचे दी गई है।

वृद्धि संधि के उदाहरण : (Vriddhi sandhi ke udaharan) व नियम

संस्कृत वर्ण माला

संस्कृत में वर्ण प्रकार- संस्कृत व्याकरण नोट्स

स्वर संधि के कितने प्रकार हैं : (swar sandhi ke prakar) उनके भेद और उदाहरण

गुण संधि की परिभाषा : (gun sandhi ke niyam) व उदाहरण

संस्कृत अच् सन्धि परिभाषा व उदाहरण : (sanskrit sandhi)

आप अन्य सामान्य ज्ञान के लिए आप फैक्ट्स पत्रिका पर जा सकते है।

Leave a Comment