वाक्य की परिभाषा, प्रकार व उदाहरण (vakya ke bhed aur udaharan)

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1. वाक्य की परिभाषा, प्रकार व उदाहरण

वाक्य की परिभाषा,प्रकार व उदाहरण- सार्थक शब्दों के सुनियोजित ढंग को वाक्य कहते हैं। अर्थात् पूर्ण अर्थ की प्रतीति कराने वाले शब्द-समूह को वाक्य कहते हैं। वाक्य सार्थक शब्द-समूह का वह विन्यास होता है, जिससे अर्थ एवं भाव की पूर्ण एवं सुस्पष्ट अभिव्यक्ति होती है।

वाक्य की आवश्यकताएँ – वाक्य में पाँच बातें आवश्यक हैं

1. सार्थकता – सार्थकता का तात्पर्य यह है कि वाक्य के शब्द सार्थक होने चाहिए।

2. योग्यता – योग्यता का तात्पर्य यह है कि शब्दों की आपस में संगति होनी चाहिए। शब्द प्रसंग के अनुसार भाव का बोध कराने की योग्यता या क्षमता रखने वाले होने चाहिए। वह कार को पानी से चलाता है। इस वाक्य में सभी पद सार्थक हैं, परन्तु पानी से कार नहीं चलती है, इसलिए पदों में परस्पर योग्यता की कमी है, अतः यह वाक्य की श्रेणी में नहीं आता है।

3. आकांक्षा – इसका अर्थ है जानने की इच्छा, अर्थ की पूर्णता। वाक्य में इतनी शक्ति होनी चाहिए कि वह पूरा अर्थ दे। वाक्य को सुनकर भाव पूरा करने के लिए कुछ जानने की आकांक्षा न रहे।

4. सन्निधि या आसक्ति – इसका अर्थ है समीपता वाक्य में शब्द समीप होने चाहिए। वाक्य के शब्दों में अन्तराल नहीं होना चाहिए।

5. अन्विति वाक्य – में व्याकरणिक दृष्टि से एक रूपता होनी जरूरी है। यह समान रूपता वचन, कारक. लिंग और पुरुष आदि की दृष्टि से होती है। हिन्दी में क्रिया प्रायः लिंग, वचन, पुरुष में कर्त्ता के अनुकूल होती है।

अतः वाक्य में आकांक्षा योग्यता, आसक्ति और क्रम का होना जरूरी है।

2. वाक्य के अंग

1. उद्देश्य 2. विधेय

1. उद्देश्य – वाक्य में जिसके सम्बन्ध में कहा जाता है, उसे उद्देश्य कहते है। इस प्रकार कर्त्ता ही वाक्य का उद्देश्य होता है, कर्ता के साथ उसका कोई विशेषण है, तो वह कर्त्ता का विस्तारक है। इस प्रकार उद्देश्य वाक्य का वह अंग जिसके बारे में वाक्य में कुछ कहा जाता है। जैसे-

राम घर जाता है। राम उद्देश्य एवं घर जाता है विद्येय है।

मेरा पुत्र महेन्द्र धार्मिक पुस्तकें अधिक पढता है।

इस वाक्य में मेरा पुत्र महेन्द्र उद्देश्य है. इसमें महेन्द्र कर्ता है तो मेरा पुत्र महेन्द्र कर्त्ता का विशेषण अर्थात् इसे कर्त्ता का विस्तारक कहेंगे।

2. विधेय – वाक्य का वह अंश है, जो उद्देश्य के बारे में सूचना देता है। कर्ता के सम्बन्ध में वाक्य में जो कुछ कहा जाता है, उसे विधेय कहते हैं। विधेय के अन्तर्गत वाक्य में प्रयुक्त क्रिया, क्रिया का विस्तारक, कर्म, कर्म का विस्तारक, पूरक तथा पूरक का विस्तारक आदिआते हैं। उपर्युक्त वाक्य में ‘धार्मिक पुस्तकें अधिक पढता है, वाक्यांश विद्येय है, जिसमें पढ़ता है, शब्द क्रिया है,

इसी प्रकार अधिक शब्द क्रिया का विस्तारक है। पुस्तकें शब्द कर्म है, धार्मिक शब्द पुस्तकों की विशेषता बताता है, अतः यह कर्म का विस्तारक है। इसके अतिरिक्त अन्य कोई शब्द है, तो उसे पूरक कहते हैं तथा पूरक की विशेषता जिन शब्दों से प्रकट होती है, उसे पूरक का विस्तारक कहते हैं।

3.वाक्य के भेद के उदाहरण

क्रिया, अर्थ एवं रचना के आधार पर वाक्यों के निम्न भेद किये जाते हैं

1. क्रिया की दृष्टि से वाक्यों के भेद

(क) कर्तृवाच्य प्रधान

वाक्य में प्रयुक्त क्रिया का सीधा अर्थात् प्रत्यक्ष सम्बन्ध कर्त्ता से होता है अर्थात् क्रिया के लिंग, वचन, कर्ता कारक के अनुसार प्रयुक्त होते हैं, वे कर्तृवाच्य प्रधान वाक्य होते हैं।

जैसे-


1
हिमाक्षी पुस्तक पढ़ती है।
2पवन पुस्तक पढ़ता है।
3वह फुटबॉल खेलता है

(ख) कर्म वाच्य प्रधान वाक्य

वाक्य में प्रयुक्त क्रिया का सीधा सम्बन्ध वाक्य में प्रयुक्त कर्म से होता है अर्थात क्रिया के लिंग वचन, कर्म के अनुसार प्रयुक्त होते हैं, उसे कर्म वाच्य प्रधान वाक्य कहते हैं। जैसे –

1हिमाक्षी ने गाना गाया।
2सुमन ने गाना गाया।

(ग) भाव वाच्य प्रधान वाक्य

वाक्य में प्रयुक्त क्रिया कर्त्ता एवं कर्म के अनुसार न होकर भाव के अनुसार होती है, उसे भाव वाच्य प्रधान वाक्य कहते हैं।

जैसे-

1राकेश से खेला नही जाता है।
2नरेश से पढ़ा नहीं जाता है।

2. अर्थ के आधार पर वाक्यों के प्रकार

अर्थ के आधार पर वाक्य आठ प्रकार के होते हैं-

1. विधानार्थक वाक्य

इस प्रकार के वाक्य जिनमें किसी बात का होना पाया जाता है अर्थात् जहाँ क्रिया द्वारा कार्य के होने की जानकारी मिलती है।

जैसे-

1राजकुमार खेलता है।
2रजनी खाना खाती है।

2. निषेधात्मक वाक्य

जहाँ कार्य का निषेध होता है अर्थात् जब वाक्य में किसी कार्य के न होने या किसी विषय के अभाव का बोध होता है, वह निषेधार्थक वाक्य कहलाता है।

जैसे-

1छात्रा ने खाना नहीं खाया है।
2रामू घर पर नहीं है।

3. आज्ञार्थक वाक्य

जिन वाक्यों में आदेश, आज्ञा, उपदेश दिया जाता है। इस प्रकार के वाक्य जिनमें किसी अन्य के द्वारा आज्ञा दी जाती है अर्थात् आज्ञा देने का बोध होता हो, उसे आज्ञार्थक वाक्य कहते हैं।

जैसे-

1राम तुम गृह कार्य करो।
2नारायण तुम खाना खाओ।
3शारदा तुम यह काम करो।

4. प्रश्न वाचक वाक्य

जिस वाक्य द्वारा कोई बात पूछी जाती है, वाक्य में प्रश्न का भाव प्रकट होता हैं। वाक्य का सम्बन्ध किसी विषय में प्रश्न पूछने का होता है. वह प्रश्न वाचक वाक्य होता है।

1तुम्हारा क्या नाम है?
2वह क्या खा रहा है?
3 नरेश कहाँ रहता है?
4वह क्या कर रहा है?
5आप खाने में क्या लेंगे?
6 वह कौन है?

5. इच्छार्थक वाक्य

इस प्रकार का वाक्य जिसमें इच्छा, शुभकामना तथा आशीर्वाद का भाव व्यक्त होता है. वह इच्छार्थक वाक्य होता है।

जैसे-

1तुम्हारी यात्रा मंगलमय हो।
2अब घर लौट जाना चाहिए।
3 अब कुछ खा लिया जाये।
4भगवान तुम्हें लम्बी उम्र दें।

6. संदेहार्थक वाक्य

जिन वाक्यों में किसी कार्य के होने ना होने का भ्रम,संदेह या सम्भावना प्रकट की गई हो, ऐसे वाक्यों के आरम्भ में शायद सम्भव है, लगता है, हो सकता है जैसे सम्भावना सूचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

जैसे-

1 शायद, मैं कल आऊँ।
2सम्भव है इस बार मैं सफल हो जाऊँ
3लगता है आज वर्षा हो।

7. संकेतार्थ वाक्य

इस प्रकार के वाक्य जिनमें संकेत या शर्त का बोध होता है अर्थात् इस प्रकार का वाक्य जिसमें संकेत या शर्त व्यक्त होती है। वे वाक्य जिनमें किसी कार्य के होने का पूर्व संकेत दिया गया हो तथा इस प्रकार के वाक्यों में यदि, तो.जो. सो आदि शर्त सूचक योजक शब्दों का प्रयोग होता है।

1बाबा आयेगा, तो घंटा बजेगा।
2तुम दूसरों का भला करोगें तो तुम्हारा भी भला होगा।
3 नौकरी लगेगी, तो शादी होगी।

8. विस्मय बोधक /उद्‌गार वाचक वाक्य

जिन वाक्यों में विस्मय शोक,हर्ष के भाव को व्यक्त किया जाता है वह विस्मयादि बोधक वाक्य होता है। जिन वाक्यों में बोलने या लिखने वाले के अचानक प्रकट हुए भावों को व्यक्त किया गया है।

जैसे

1बाप रे। आदमी है कि राक्षस।
2हे राम’ यह तो यहां भी आ गया।
3अरे। यह क्या हुआ।
4वाह। कैसा सुन्दर दृश्य है।

3. रचना के आधार पर वाक्यों के प्रकार –

1.साधारण वाक्य

इस प्रकार का वाक्य जिसमें एक उद्देश्य तथा एक विधेय होता हैं, उसे साधारण वाक्य कहते हैं।

जैसे-

1लड़का पढ़ता है।
2महिमा खाना बना रही है।
3फूल सुन्दर है।
4राकेश फुटबॉल खेलता है।

2. मिश्र या मिश्रित वाक्य

जिस वाक्य में एक प्रधान उप वाक्य तथा एक या एक से अधिक आश्रित उप वाक्य होते हैं, वह मिश्र या मिश्रित वाक्य होता है। मिश्रित वाक्य में प्रधान उपवाक्य को हटा देने पर आश्रित उप वाक्य का अर्थ नहीं निकलता है। मिश्रित वाक्यों में दो आश्रित उपवाक्य परस्पर जिसने, जिसको, जिसे, जिसका, जिसकी, जिसके, उसका, उसकी, उसके, सो, जो, तो, जैसे, इस प्रकार, उस प्रकार, क्योंकि, ताकि, इसलिए, कि आदि योजक शब्दों से जुड़े होते हैं।

जैसे

1 देव कुमार नरेश का छोटा भाई है, जो आज विद्यालय नहीं आया है।
2यदि मैं पढ़ता रहता तो आज मेरी यह दुर्दशा नहीं होती।
3मैं चाहता हूँ कि तुम खेलोगें।
4मैं यहाँ उसी काम के लिए आया हूँ, जिसके लिए आप आये हैं।
5यदि परिश्रम करोगे तो पास हो जाओगे।
6मैं चाहता हूँ कि तुम एक सफल शिक्षक बनो।

उप वाक्यों के प्रकार –

1. प्रधान उपवाक्य

जो उपवाक्य प्रधान या मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय से बनता है तथा जिस पर आश्रित उपवाक्य के अर्थ की निश्चितता निर्भर करती हो, उसे प्रधान उपवाक्य कहते हैं। प्रधान उपवाक्य में एक प्रधान उद्देश्य तथा एक प्रधान विधेय होता है।

जैसे – मैंने देखा कि बाबा रामदेव योग विद्या में प्रवीण हैं।

इस वाक्य में मैंने देखा प्रधान उपवावध हैं तथा बाबा रामदेव योग विद्या में प्रवीण हैं, उपवाक्य आश्रित हैं। इसी प्रकार स्वामी विवेकानन्द ने कहा कि सदैव सत्य बोलो। इस में ‘स्वामी विवेकानन्द’ ने कहा प्रधान उप वाक्य है। स्वामी विवेकानन्द मुख्य उद्देश्य है तथा कहाँ मुख्य विधेय। किसी भी वाक्य में जो उपवाक्य आश्रित या गौण न होकर प्रधान होता है, उसे प्रधान उप वाक्य कहते हैं।

2. आश्रित उपवाक्य –

वह वाक्य जो प्रधान न होकर गौण अथवा दूसरे पर आश्रित होता है। जैसे- वह गाय चली गई जो सबसे अच्छी थी। इस वाक्य में जो सबसे अच्छी थी आश्रित है। जोि उपवाक्य प्रधान वाक्य पर आश्रित रहता है, उसे आश्रित उपवाक्य कहते हैं। इस प्रकार जिस वाक्य का अर्थ प्रधान उपवाक्य पर आश्रित रहता है, उसे आश्रित उपवाक्य कहते है।

2. आश्रित उपवाक्य

आश्रित उपवाक्य के प्रकार

आश्रित उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं।

1. संज्ञा उपवाक्य

जो कर्म या पूरक रूप में संज्ञा का काम करता है जैसे मैं कहता हूँ कि वह सफल नहीं हो सकता। अतः कहा जा सकता है कि जब किसी आश्रित उपवाक्य का प्रयोग प्रधान उपवाक्य की किसी संज्ञा के स्थान पर होता है तो उसे संज्ञा उपवाक्य कहते हैं। संज्ञा उपवाक्य का प्रारम्भ प्रायः ‘कि’ से होता है। उपर्युक्त वाक्य कि वह सफल नहीं हो सकता। यह वाक्य ‘कि’ से प्रारम्भ होने के कारण संज्ञा उपवाक्य है।

2. विशेषण उपवाक्य

इस प्रकार का वाक्य जो किसी संज्ञा की विशेषता बताता है अर्थात वह आश्रित उपवाक्य जो किसी संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताता है, उस वाक्य को विशेषण उपवाक्य कहते हैं। विशेषण उपवाक्य प्रायः जो. जिसका, जिसकी, जिसके आदि शब्दों से प्रारम्भ होता है।

जैसे-

1वे छात्र उत्तीर्ण हो जायेगें, जो परिश्रम करेंगे।

3. क्रिया विशेषण उपवाक्य

इस प्रकार का वाक्य जो क्रिया की विशेषता बताता है या क्रिया की सूचना देता है, उस आश्रित उपवाक्य को क्रिया विशेषण उपवाक्य कहते है। क्रिया विशेषण उपवाक्य प्रायःयदि, जहाँ, जैसे, यद्यपि, क्योंकि जब, तब आदि किसी एक शब्द से प्रारम्भ होता है। जैसे- जब भी वह मेरे सामने आता है, मेरा हृदय दया से भर जाता है।

3. संयुक्त वाक्य

जिस वाक्य में कोई भी उपवाक्य प्रधान या आश्रित नहीं होता है, वह संयुक्त वाक्य होता है अर्थात् जिस वाक्य में दो या दो से अधिक साधारण वाक्य या प्रधान उपवाक्य या समानाधिकरण उपवाक्य किसी संयोजक शब्द जैसे तथा, एवं, या, अथवा, और, परन्तु, लेकिन, किन्तु बल्कि, अतः आदि से जुड़े हो, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं।

जैसे

1 राम आया और सोहन चला गया।
2मैंने मेरे मित्रों को गाड़ी में बैठाया और वहाँ से चल दिया।
3किताब हाथ से गिरी और फट गई।

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