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छंद किसे कहते हैं

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छंद किसे कहते हैं– आचार्य पिंगल द्वारा रचित “छन्दशास्त्र” सबसे प्राचीन उपलब्ध ग्रन्थ है, इस शास्त्र को पिंगलशास्त्र भी कहते हैं।
जिन रचनाओं में वर्ण, मात्रा यति (विराम), गति (लय), तुक आदि पर बल दिया जाता है, वे छन्द कहलाते हैं। अक्षरों की संख्या एवं क्रम मात्रा, गणना तथा यति-गति से सम्बद्ध विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्य रचना छन्द कहलाती है।

छंद किसे कहते हैं

छन्द के अंग

वर्ण

हस्व वर्ण – अ, इ, उ, ऋ, चन्द्र बिंदु
दीर्घ वर्ण – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अनुस्वार और विसर्ग मात्रा
छंद की परिभाषा
लघु मात्रा – ।
दीर्घ मात्रा – ऽ

यति

छन्दों को पढ़ते समय कई स्थानों पर विराम लेना पड़ता है, उन्हीं विराम-स्थलों को ‘यति’ की संज्ञा दी गयी है। नियमित वर्णों अथवा मात्राओं पर ‘यति’ लागू होती है।

गति

छन्दों को पढ़ते समय एक प्रकार के प्रवाह (धारा) की अनुभूति होती है, जिसे ‘गति’ कहते हैं।

तुक

छन्दों को पदान्त में जो अक्षरों की समानता पायी जाती है, उन्हें ‘तुक’ कहते हैं।
तुक दो प्रकार के होते है-
(i) तुकान्त
(ii)अतुकान्त

A i. तुकान्तः तुकवाले छन्दों को ‘तुकान्त’ कहते हैं।
ii. अतुकान्तः तुक-हीन छन्दों को ‘अतुकान्त’ कहते हैं।

पाद या चरण

प्रत्येक छन्द में कम से कम चार चरण होते हैं। इनमें प्रत्येक पंक्ति अर्थात् छन्द के चतुर्थांश को चरण कहते हैं। चरण को पद या पाद भी कहते है

गण

वर्णिक (वृत्त) में लघु-गुरु के क्रम को बनाये रखने के लिए गणों का प्रयोग होता है। तीन वर्णों के समूह को गण की संज्ञा दी गयी। गणों की संख्या आठ होती है। जो हैं – यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण। इनके लिए एक सूत्र की व्यवस्था दी गयी है, जो निम्नलिखित है –

IIIII
माताराभागा
सूत्र संकेतनाममात्राएँउदाहरण
यमातायगणIऽऽयशोदा
मातारामगणऽऽऽमाताजी
ताराजतगणऽऽIतालाब
राजभारगणऽIऽरामजी
जभानजगणIऽIजवान
भानसभगणऽIIभारत
नसलनगणIIIनमन
सलगासगणIIऽसलमा

छंद किसे कहते हैं-छन्द के भेद

छन्द के 3 भेद होते हैं-

मात्रिक छंद
वर्णिक छंद
मुक्तक छंद

मात्रिक के तीन भेद है-

सममात्रिक छंद – इसमें चारों चरणों में मात्रा समान रहती है।

चौपाई – 16 मात्रा
राधिका – 22 मात्रा
तोमर – 12 मात्रा
गीतिका – 26 (14 + 12)
अहीर – 11 मात्रा
हरी गीतिका – 28 (16+12)
रोला – 24 (11 + 13)

अर्द्धसममात्रिक छंद – प्रथम और तृतीय तथा द्वितीय और चतुर्थ में मात्रा समान रहेंगी।

सोरठा – 11, 13
दोहा – 13, 11
बरवै – 12, 7
उल्लाला – 15, 13

विषम मात्रिक छन्द – इसमें छः चरण होगें तथा प्रत्येक में मात्राओं की संख्या भिन्न होगी।

कुण्डलिया
छप्पय

वार्णिक छंद – इसमें वर्णों की गिनती होगी।

इन्द्रवज्रा – 11 वर्ण (दो तगण, एक जगण)
उपेन्द्रवज्रा – 11 वर्ण (तगण, जगण, जगण)
भुजंगप्रयाति – 12 वर्ण (4 यगण)
वंशस्थ – 12 वर्ण (जगण, तगण, जगण, रगण)
द्रुर्ताव लम्बित – 12 वर्ण (नगण, 2 भगण, 1 रगण)
बसंततिलका – 14 वर्ण
मालिनी – 15 वर्ण
शिखरिणी – 17 वर्ण
सवैया – 22 – 26 वर्ण

मुक्तक छंद – चरणों की अनियमित, असमान, स्वच्छन्द गति और भावानुकूल यति विधान ही मुक्तक -छन्द है। भक्ति काल तक मुक्त छन्द का कोई अस्तित्व नहीं था। इन छन्दों के चरणों में मात्रा अथवा वर्णों की संख्या का कोई नियम नहीं रहता है। इसमें केवल पद्य का प्रवाह अपेक्षित है। पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला से लेकर नयी कविता तक हिन्दी कविता में इसका अत्यधिक प्रयोग हुआ है। आधुनिक कविता इसी मुक्तक छन्द में लिखी जा रही है। जैसे
वह तोड़ती पत्थर, देखा मैने उसे, इलाहाबाद में पथ पर

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