स्वर संधि के प्रकार : Swar Sandhi Ke Prakar : भेद परिभाषा व उदाहरण

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Swar Sandhi Ke Prakar– दो वर्णो के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है उसे सन्धि कहते हैं। आज हम स्वर के बारे में पढेंगे और जानेंगे की इसके कितने भेद होते है और बहुत से उदाहरण से इसको बेहतर जानेंगे और आपको पूरी तरह से ज्ञाता बनाने की भरपूर कोशिश करेंगे।

Swar Sandhi Ke Prakar, स्वर संधि के प्रकार,भेद

दो वर्णो के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है उसे सन्धि कहते हैं। यथा- विद्या + आलय = विद्यालय स्वर से स्वर के मेल होने पर जो विकार उत्पन्न होता है उसे स्वर सन्धि कहते हैं। दो स्वरों के आपस में मेल होने से जो रूप परिवर्तन हो उसे स्वर संधि कहते हैं। यथा- रमा + ईश = रमेश

स्वर संधि के निम्नलिखित 5 भेद होते हैं

  • दीर्घ संधि
  • गुण संधि
  • वृद्धि संधि
  • यण संधि
  • अयादि संधि

दीर्घ संधि

सूत्रअक:सवर्णे दीर्घ”

यदि हृस्व दीर्घ अ,उ,ऋ,लृ,इ,के बाद क्रमशः सम्मान वर्ण आते हैं तो दोनों को मिलाकर दीर्घ हो जाता है अर्थात

  • अ+अ =आ
  • इ+इ =ई
  • उ+उ =ऊ
  • ऋ+ऋ =ऋ

दीर्घ संधि के उदाहरण, Dirgha Sandhi Ke Udaharan

संकेत सूत्र – अ+अ/आ= आ

  • आधार + आधेय = आधाराधेय
  • स्व + अधीन = स्वाधीन
  • सर्व + अधिक = सर्वाधिक
  • अद्य + अवधि = अद्यावधि
  • अल्प + अंश = अल्पांश

संकेत सूत्र – आ+आ = आ

  • वार्ता+आलाप = वार्तालाप
  • क्षुधा + आर्त = क्षुधार्त
  • विधवा + आश्रम = विधवाश्रम
  • कृपा+आयतन = कृपायतन
  • परंपरा + आगत = परंपरागत

संकेत सूत्र अ/आ+अ/आ = आ

  • तोय + आधार = तोयाधार
  • क्वथन+अंक = क्वथनांक
  • महा+अमात्य = महामात्य
  • पंच + आयत = पंचायत
  • निशा+अंत = निशांत

विशेष-राम+अयन रामायण। इस शब्द में ‘दीर्घ संधि’ तथा व्यंजन संधि दोनों हैं, क्योंकि ‘न’ का ‘ण’ हुआ है। जब किसी शब्द में एक से अधिक संधियाँ होती हैं तो प्रथम मूल खंडों के मध्य जो संधि हुई है, प्रधानतः वह शब्द उसी संधि का उदाहरण माना जाएगा।

  • हिम+अद्रि = हिमाद्रि
  • शीत+अंशु = शीतांशु
  • सुधा + अंशु = सुधांशु
  • हिम+अंशु = हिमांशु
  • अमृत+अंशु = अमृतांशु
  • त्रिपुर+अरि = त्रिपुरारि
  • देश + अटन = देशाटन
  • तीर्थ +अटन = तीर्थाटन
  • मेघ +अवली = मेघावली
  • दृश्य + अवली = दृश्यावली

संकेत सूत्र इ/ई+इ/ई = ई

  • गिरि + इन्द्र = गिरीन्द्र
  • मणि + इन्द्र = मणीन्द्र
  • मुनि + इन्द्र = मुनीन्द्र
  • कवि + इन्द्र = कवीन्द्र
  • रवि + इन्द्र = रवीन्द्र

संकेत सूत्र ई+ई = ई

  • श्री+ईश = श्रीश
  • सती + ईश = सतीश
  • मही + ईश = महीश
  • रजनी + ईश = रजनीश
  • लक्ष्मी + ईश = लक्ष्मीश

संकेत सूत्र:- उ/ऊ+उ/ऊ = ऊ

  • भानु + उदय = भानूदय
  • विधु + उदय = विधृदय
  • सिंधु +ऊर्मि = सिंधूर्मि
  • लघु +ऊर्मि = लघूर्मि
  • सरयू + ऊर्मि = सरयूमिं

संकेत सूत्र – ऋ + ऋ = ऋ

  • प्रतिवस्तु + उपमा = प्रतिवस्तृपमा
  • पितृ + ऋण = पितृण
  • स्वस् + ऋण = स्वसृण

गुण संधि

अ तथा आ के बाद यदि इ, ई, उ, ऊ या ऋ स्वर आए तो इनके मेल से ‘ए’ ओ और अर हो जाता है यह मेल गुण संधि कहलाती हैं।

गुण संधि के उदाहरण, Gun Sandhi Ke Udaharan

  • काव्य + इतर = काव्येतर
  • इतर + इतर = इतरेतर
  • अन्य + इतर = अन्येतर
  • विवाह + इतर = विवाहेतर
  • शिक्षण + इतर = शिक्षणेतर
  • भग्न + उत्साह = भग्नोत्साह
  • उष्ण + उष्ण = उष्णोष्ण
  • धार + उष्ण = धारोष्ण
  • व्याज + उक्ति = व्याजोक्ति
  • प्रिय + उक्ति = प्रियोक्ति

वृद्धि संधि

यदि किसी शब्दों में अ +ए = ऐ, आ+ए=ऐ ,आ+ऐ =ऐ ,अ+ओ=औ ,अ+औ=औ व आ+औ = औ हो जाता है। इस प्रक्रिया को वृद्धि संधि कहा जाता है।

वृद्धि संन्धि के उदाहरण, Vriddhi Sandhi Ke Udaharan

  • मत+एकता = मतैकता
  • धन+एषणा = धनैषणा
  • विश्व + एकता = विश्वैकता
  • तथा + एव = तथैव
  • महा+एषणा = महैषणा
  • जल+ओक = जलौक
  • दंत+ओष्ठ्य = दंतौष्ठ्य
  • बिंब + ओष्ठ् = बिंबोष्ठ
  • वन+औषधि = वनौषधि
  • महा+औदार्य = महौदार्य

यण संधि

दीर्घ इ,उ,ऋ के बाद कोई असमान स्वर आता है, तो इ के स्थान पर य, उ के स्थान पर व् और ऋ के स्थान पर र् हो जाता है। इनके साथ जो स्वर मिलते हैं, उनकी मात्रा य्,व्,र् में लग जायेगी। स्वर जिस व्यंजन के लगा होता है, वह संधि होने पर स्वर रहित हो जाता है। यण संधि में य्,व्र् के पहले के व्यंजन स्वर रहित रहते हैं। य्,व् ,र् से पहले स्वर के बिना व्यंजन का होना यण् संधि का गुण होता है।

यण संधि के उदाहरण, Yan Sandhi Ke Udaharan

  • नि+आय = न्याय
  • नि+आस = न्यास
  • नि+आसी = न्यासी
  • वि + अय = व्यय
  • वि +अर्थ = व्यर्थ
  • वि+अष्टि = व्यष्टि
  • प्रति+आशी = प्रत्याशी
  • प्रति + उषा = प्रत्युषा
  • प्रति + एक = प्रत्येक
  • प्रति + उत्पन्न = प्रत्युत्पन्न

अयादि सन्धि

ए, ऐ, ओ, औ के पश्चात यदि कोई स्वर हो तो ए का ‘अय्’ तथा ऐ का ‘आय्’ व ओ का ‘अव्’ और ‘औं’ का ‘आव्’ हो जाता है। तथा साथ ही मिलने वाले स्वर की मात्रा य् तथा व् में लग जाती हैं। इसमें संधि विच्छेद करते समय यह ध्यान रखें कि यदि ‘य’ के पहले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तो उसमें ‘ए’ की मात्रा तथा ‘आ’ का स्वर हो तो औ की मात्रा लगा दी जाती है तथा ‘य’ एवं ‘व’ में जो स्वर है उससे अगला शब्द हो जाता है।

अयादि सन्धि के उदाहरण, Ayadi Sandhi Ke Udaharan

  • सै +अक = सायक
  • गो + ईश = गवीश
  • लो + इत्र = लवित्र
  • पो + इत्र = पवित्र
  • भौ + इनी = भाविनी
  • भो +अन = भवन
  • श्रो + अन = श्रवण
  • पो + अन = पवन
  • प्रसो + अ = प्रसव
  • हो + इष्य = हविष्य

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